और अगर आप इसे से हो रही है साइट भी इसके बारे में एक कानूनी घोषणा नहीं है, तो आप शायद कुछ खरीदने में कर रहे हैं scammed किया जा रहा है.
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विवाह एक सामाजिक संस्था है वह जन्म जात स्वभाव अथवा प्राक्रतिक भाव नही है मनुष्य की आवश्यकता और प्राकृतिक आकर्षण के आधार पर पुरुष नारी के प्रति अथवा नारी पुरुष के प्रति सम्मोहित होती है तो स्थायी भाव रति श्रृंगार रस में रूपांतरित हो ने लगती है फिर दाम्पत्य बनने लगता है यहाँ तक तो सब कुछ स्वाभाविक है किन्तु विवाह की सामाजिक व कानूनी घोषणा स्वाभाविक व प्राकृतिक नही है अत: